Tuesday, August 24, 2010

दो चेहरे

  कदम ज़मीं पर पड़ते हैं  तो आहट सी क्यूँ होती हैं,
 उसके आने से ही दिल को  राहत सी क्यूँ होती हैं |


 उसकी बातें,  बातें नहीं हैं,  प्यार भी हैं,  उन बातों में ,
 मुझको फिर भी उन बातों से,नफ़रत सी क्यूँ होती हैं|


 वो  इक  दायरे में बंधा हैं, और  मैं  आज़ादी चाहता हूँ ,
 हम दोनों की फिर इक जैसी हालत सी क्यूँ होती हैं|


मुझको ज़मीं की फिक्र हैं, वो आसमान को तकता हैं,     
बारिश के मौसम को हमसे अदाबत सी क्यूँ होती हैं|


वो अच्छा हैं, यां मैं अच्छा हूँ , ये काम की बात नहीं,
सोचो, तो ये सोचो, हम में, चाहत सी क्यूँ होती हैं |