Monday, February 17, 2014

अपने चेहरे से लगाब सा क्यूँ नहीं जाता,

शीशा  हूँ आईने के रूबरू नहीं जाता । 


कोई मिलता नहीं तेरे जैसा,

तेरे होने का गुमान नहीं जाता ।


वो जो कहता है पूरी बात नहीं,

मैं जो सुनता हूँ भुला नहीं पाता । 


वक़्त रहता अगर कहीं टिक कर,

तो मैं भी कहता के क्यूँ नहीं जाता। 

 

Friday, February 07, 2014

मेरी मुझसे सुलह होगीं 
       
    ना जाने कितने सालों में,
 
मैं अब भी खुद से लड़ता हुँ
       
    मैं अब भी खुद पे बिगड़ता हूँ ॥ 
 
  
 
     मुझे तब्बस्सुम की चाहत है
               
               उसे पर्दे में राहत है,
     
     वो सिमटी-सिमटी सी रहती है 
               
               मैं सहमा-सहमा सा रहता हुँ ॥