मेरी मुझसे सुलह होगीं
ना जाने कितने सालों में,
मैं अब भी खुद से लड़ता हुँ
मैं अब भी खुद पे बिगड़ता हूँ ॥
मुझे तब्बस्सुम की चाहत है
उसे पर्दे में राहत है,
वो सिमटी-सिमटी सी रहती है
मैं सहमा-सहमा सा रहता हुँ ॥
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