कुछ यादों के तकिये बना कर सर रख के लेट जाता हूँ ,
ओढ़ लेता हुँ नाकाम इरादों की चादर ,
जब कभी गुज़रे दिनों का बिस्तर लगाता हूँ ॥
ना मैं तुम्हारा था कभी,
ना तुम कभी मेरे हुए ।
कुछ देर के थे हमसफ़र ,
कुछ दूर जा कर जुदा हुए ।
हमने सोचा, हम को लगा ,
मिल गया है इक हमसफ़र ।
रोते हैं अब उस घड़ी को ,
रास्ते जब युदा हुए ।
शायद अच्छा ही हुआ ,
शायद यही किस्मत थी मेरी ।
तन्हाई भी तो अच्छी है ,
शुक्र है जो तन्हा हुए ।
कोई बंधन, कोई रिश्ता, कोई नाता,
बनता तो अधूरा रहता ।
कब, कहाँ, किसी से कभी ,
सारे वादे पूरे हुए ।
तुमको भी जीना, हमको भी जीना,
आ गया है अब शायद ।
तुम भी खुश हो ज़िंदगी से,
हम भी रुसवा ना हुए ॥
ना मैं तुम्हारा था कभी, ना तुम कभी मेरे हुए ।
ओढ़ लेता हुँ नाकाम इरादों की चादर ,
जब कभी गुज़रे दिनों का बिस्तर लगाता हूँ ॥
ना मैं तुम्हारा था कभी,
ना तुम कभी मेरे हुए ।
कुछ देर के थे हमसफ़र ,
कुछ दूर जा कर जुदा हुए ।
हमने सोचा, हम को लगा ,
मिल गया है इक हमसफ़र ।
रोते हैं अब उस घड़ी को ,
रास्ते जब युदा हुए ।
शायद अच्छा ही हुआ ,
शायद यही किस्मत थी मेरी ।
तन्हाई भी तो अच्छी है ,
शुक्र है जो तन्हा हुए ।
कोई बंधन, कोई रिश्ता, कोई नाता,
बनता तो अधूरा रहता ।
कब, कहाँ, किसी से कभी ,
सारे वादे पूरे हुए ।
तुमको भी जीना, हमको भी जीना,
आ गया है अब शायद ।
तुम भी खुश हो ज़िंदगी से,
हम भी रुसवा ना हुए ॥
ना मैं तुम्हारा था कभी, ना तुम कभी मेरे हुए ।
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