Tuesday, December 17, 2013

"कुछ पुरानी रचनाएँ"







" जितना भी मिला मुझको ,था काफी मिला,
फिर भी कमी का क्यूँ, इक सिलसिला मिला ॥"

" भटका पंछी सूखी डाल पे
   जपे हरी का नाम,
   देस बेगाना तरू अन्जाने ,
   ढलती जाए शाम ॥"


" अरमाँ है मिले आपको सुनहरी कल में,
  सुर्य कि लालिमा कि सुनहरी छटा,
  और हमें मंजूर अपने आसमां पे,
  आपके हिस्से कि हर काली घटा ॥"


" ज़िक्र के काबिल भी वक़्त ने ना छोड़ा हमें अब,
   कभी हम भी महफ़िलों कि शान हुआ करते थे ॥"
 
 
 
"  खुलासा -ए -दिल  क्या करें हम किसी से,
 
    यूँ तो तमन्नाए बहुत हैं, मगर कही नहीं जातीं ॥"  
 
 
 
 " अधर सूखे से पत्तों की तरह नज़र आते है,
     अब इन रिश्तों में पहले सी गरमजोशी भी नहीं। 
        वो भी तन्हा सा लगता हैं फ़लक पे आसीन,
          इस चाँद का तो कब से कोई पड़ोसी भी नही ॥"
 
 
 
 
 
 
 

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